POORAN RAWAT/EDITOR
एक वक्त था जब देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान,जय किसान का नारा दिया था….शास्त्री जी ने इस नारे के जरिये लोगों को यह संदेश दिया था कि किसान और जवान दोनों ही देश की दशा और दिशा तय करते हैं….
जय किसान का नारा बुलंद करते हुए इन दिनों तराई में बसे जनपद ऊधमसिंहनगर के किसान फसलों पर पड़ी मौसम के मार के बावजूद नुकसान की चिंता किए बिना कोरोना के खिलाफ जंग में जरूरतमंद लोगों को खाद्य सामग्री मुहैया कराने के लिए निशुल्क रूप से सामाजिक संस्थाओं को खाद्यान्न उपलब्ध करा रहे हैं….
गौरतलब है कि कृषि और किसान भारतीय परम्परा के वाहक हैं….जहां एक तरफ जवान देश की रक्षा कर रहे है,वहीं दूसरी तरफ किसान खेती के जरिये देश को खाद्यान्न उपलब्ध करा रहे हैं….अगर किसान नहीं होगा तो देश में खाद्यान्न संकट पैदा हो जाएगा….
कोरोना के खिलाफ जंग में देवभूमि उत्तराखंड के तराई में बसे ऊधमसिंहनगर जिले के किसानों ने निशुल्क रूप से सामाजिक संस्थाओं को खाद्यान्न उपलब्ध कराकर एक नई पहल करते हुए मानवता की मिसाल पेश की है….
देश में आई आपदा के वक्त जय किसान का नारा बुलंद करते हुए खेती में हुए नुकसान के बावजूद संकट के वक्त समाज सेवा के लिए आगे आने वाले तराई के इन किसानों के जज्बे को हम भी करते हैं सलाम|
पैर हों जिनके मिट्टी में,दोनों हाथ कुदाल पर रहते हैं
सर्दी,गर्मी या फिर बारिश,सब कुछ वो सहते हैं
आसमान पर नज़र हमेशा आंधी-तूफ़ां सब सहते हैं
खेतों में हरियाली आये,इसलिए दिन-रात खेतों में लगे रहते हैं
मेहनत कर वे अन्न उगाते,पेट सभी का भरते हैं
वो है मसीहा मेहनत का है,जिसको हम किसान कहते हैं|