POORAN RAWAT/EDITOR
कानपुर मुठभेड़ में शहीद हुए पुलिसकर्मियों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह खुलासा हुआ है कि बदमाशों ने पुलिस कर्मियों के सर,पेट और सीने में गोलियां मारी थी….शहीद पुलिसकर्मियों के पोस्टमार्टम के दौरान डॉक्टर भी मृतक पुलिसकर्मियों के शरीर पर गोलियों के निशान देखकर दंग रह गए….पुलिसकर्मियों के सर चेहरे,सीने और पेट में गोलियां लगीं थी….सीओ बिल्हौर देवेंद्र मिश्र के चेहरे और पेट सहित पूरे शरीर पर पांच गोलियां मारी गई थी….चार डिप्टी सीएमओ सहित डॉक्टरों के 12 सदस्यीय दल ने शहीद पुलिस कर्मियों का पोस्टमार्टम किया था….हम आपको बता दें कि कानपुर मुठभेड़ में वेंद्र कुमार मिश्र सीओ बिल्हौर,महेश यादव एसओ शिवराजपुर,अनूप कुमार चौकी इंचार्ज मंधना,दरोगा नेबूलाल,कांस्टेबल सुल्तान सिंह,राहुल,जितेंद्र और बबलू शहीद हो गए थे….
सूत्रों के अनुसार कानपुर मुठभेड़ की वारदात के पीछे पुलिस विभाग के ही किसी भेदिए का हाथ हो सकता है और पुलिस विभाग के ही किसी भेदिए ने अपराधी विकास दुबे को पुलिस टीम के दबिश की योजना के बारे में पूरी सूचना पहले ही दे दी थी …. अगर कानपुर मुठभेड़ की पूरी वारदात को सिलसिलेवार तौर पर देखा जाए तो पुलिस की दबिश से लेकर उसके पूरे मूवमेंट तक के पल-पल की खबर कुख्यात अपराधी विकास दुबे को पहले से थी….इस जघन्य वारदात के बाद अब पुलिस के आला अधिकारी भी मान रहे हैं कि विकास दुबे का नेटवर्क पुलिस के नेटवर्क से ज्यादा मजबूत था,यही कारण है कि उसने इस बड़ी वारदात को अंजाम दिया….विकास दुबे कितना शातिर और कुख्यात अपराधी था इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पुलिस की दबिश की जानकारी मिलने के बाद भी विकास दुबे ने मौके से फरार होने के स्थान पर पुलिस को सबक सिखाने की योजना बना ली….
(गैंगस्टर विकास दुबे के मकान को जेसीबी मशीन से पुलिस ने करवाया ध्वस्त)
जबकि बड़े से बड़ा बदमाश पुलिस दबिश की सूचना मिलते ही मौके से पहले ही फरार हो जाता है पर शातिर अपराधी विकास दुबे ने अपने गिरोह के अन्य सदस्यों के साथ पुलिस से ही मुठभेड़ की योजना बना ली और छतों पर अत्याधुनिक हथियारों से लैस होकर मोर्चा संभाल लिया और जैसे ही पुलिसकर्मी गांव में पहुंचे एकाएक छतों से अपराधियों ने पुलिस टीमों पर अंधाधुंध गोलियां चलाई और अलग-अलग टीमों में बटी पुलिस की टीमें जब तक संभालती तब तक सीओ,दो दरोगा और एक थानाध्यक्ष सहित पुलिस के 8 जवान शहीद हो चुके थे….
कानपुर मुठभेड़ की पूरी वारदात में एक बात तो समझ से परे है कि बिकरू गांव चौबेपुर थानाक्षेत्र में आता है और जब पुलिस टीम ने गांव में दबिश दी तो बाकी थानों की फोर्स एसओ और सीओ के नेतृत्व में आगे बढ़ गई पर एसओ चौबेपुर विनय तिवारी गांव के मार्ग पर खड़ी जेसीबी मशीन के पीछे खड़े रहे,जबकि थानाक्षेत्र उनका था और गांव की भौगोलिक स्थिति के बारे में भी उन्हें ज्यादा जानकारी थी,बावजूद इसके वह मुठभेड़ के दौरान वह ज्यादा आगे नहीं बढ़े….
उधर आज इस पूरे मामले पर प्रारंभिक जांच के बाद आईजी कानपुर रेंज ने चौबेपुर के थानाध्यक्ष विनय तिवारी को निलंबित कर दिया है…वहीं दूसरी तरफ आज पुलिस ने कुख्यात अपराधी विकास दुबे के आलीशान महल को जेसीबी मशीनों से ध्वस्त कर खंडहर में तब्दील कर दिया है….इसके अलावा विकास दुबे के घर में मौजूद दो लग्जरी गाड़ियों को भी पुलिस टीम ने जेसीबी मशीन से ध्वस्त करवा दिया है….हम आपको बता दें कि विकास दुबे खिलाफ वर्तमान समय में हत्या,हत्या के प्रयास,बलवा लूट और डकैती सहित कुल 71 मुकदमे दर्ज हैं….जिनमें से अकेले चौबेपुर थाने में 60 मुकदमें विकास दुबे के ऊपर दर्ज हैं….
(हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे के ऊपर चौबेपुर थाने में दर्ज मुकदमे की लिस्ट)
विकास दुबे की गिरफ्तारी के लिए फिलहाल एसटीएफ सहित पुलिस की 100 टीमों को लगाया गया है….उधर सूत्रों की मानें तो यूपी पुलिस विकास दुबे की सारी संपत्ति और सभी बैंक खातों को भी जल्द ही सीज कर देगी…. विकास दुबे की जल्द से जल्द गिरफ्तारी के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस ने उसके ऊपर ₹50000 का इनाम भी घोषित कर दिया है….उधर सूत्रों की मानें तो विकास दुबे की गिरफ्तारी के लिए देश के कई राज्यों के साथ ही देश के बाहर भी पुलिस टीमों को भेजा गया है….
कानपुर मुठभेड़ प्रकरण पर अगर गंभीरता से चिंतन किया जाए तो एक बात बिल्कुल साफ है कि अगर समय रहते अपराध की दुनिया में कदम रखने वाले कुख्यात बदमाश विकास दुबे पर पुलिस ने शिकंजा कसा होता तो आज यूपी पुलिस को यह दिन न देखना पड़ता….
साथ ही देश के अन्य राज्यों की पुलिस को भी इस पूरी वारदात से यह सबक लेना चाहिए कि पुलिस को हमेशा कानून का राज कायम रखते हुए अपराध और अपराधियों पर सख्ती से अंकुश लगाना चाहिए….दरअसल अपराधी केवल अपराधी होता है और अगर पुलिस अपराधी द्वारा किए जाने वाले अपराधों को नजरअंदाज करने लगे तो आने वाले समय में आम लोगों के साथ-साथ अपराधी पुलिस को भी अपना निशाना बनाने से नहीं चूकते हैं और कानपुर मुठभेड़ की पूरी वारदात इसका सबसे बड़ा जीता-जाता उदाहरण है|