POORAN RAWAT/EDITOR
देश में मधुमक्खी पालन का काम करने वाले किसानों के लिए एक अच्छी खबर है….गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविघालय की एक नई खोज के बाद कीट विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों को डंक रहित ऐसी मधुमक्खियों को पालने में सफलता मिल गई है जिनका शहद बाजार में साधारण शहद की तुलना में 10 गुना ज्यादा मंहगा बिकता है….
गौरतलब है कि पंतनगर कृषि विश्वविघालय के कीट विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों ने विश्वविघालय के मधुमक्खी पालन अनुसंधान एंव प्रशिक्षण केंद्र में डंक रहित मधुमक्खियों जिसका वैज्ञानिक नाम टेटारागोनुला इरीडीपेनिस है और जिसे डामर मधुमक्खी भी कहते है को पालने की तकनीक विकसित कर ली है….डंक रहित मधुमक्खी भारतीय मौन एंव इटालियन मौन की भांति ही एक समाजिक कीट है….देखने में छोटे आकार की दिखने वाली ये मधुमक्खी उत्तर भारत के पंजाब,हरियाणा,राजस्थान,महाराष्ट्र, यपी,गुजरात,उड़ीसा उत्तराखंड के साथ ही उत्तर पूर्व और दक्षिण भारत के सभी राज्यों में पाई जाती है….डंक रहित मधुमक्खियों की शहद उत्पादन क्षमता इटालियन और भारतीय मौन की अपेक्षा कम होती है लेकिन इनसे मिलने वाले शहद में गुणवत्ता काफी अधिक होती है….इसलिए सामान्य शहद की अपेक्षा इनका शहद का बाजार में 10 गुना अधीक मूल्य पर बिकता है और अंतरराष्ट्रीय बाजार में इनके शहद की मांग भी बहुत है….
(डॉ एमएस खान, प्राध्यापक ,कीट विज्ञान विभाग पंतनगर विश्वविद्यालय)
डंक रहित मधुमक्खियों के पालन से एक तरफ जहां देश में शहद के उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है,वहीं दूसरी तरफ इन मधुमक्खियों से मिलने वाले शहद को दस गुना अधिक मूल्य पर बैच कर मौन पालक किसानों की आय में भी काफी वृद्धी होगी और किसानों की आर्थिक स्थति में भी काफी सुधार होगा…. इन मधुमक्खियों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि शहद के अलावा इनसे पराग और प्रोपोलिस भी प्राप्त किया जा सकता है….साथ ही इन मधुमक्खियों का खासकर, सूरजमुक्खी,सरसों, अरहर,लीची,आम,अमरूद,नारियल, और कद्दूवर्गीय सब्जियों के पारगण क्रिया उत्पादन में बहुत योगदान होता है|