विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर उत्तराखंड के तराई में बसे जनपद ऊधमसिंहनगर में स्थित बाजपुर तहसील के बरहैनी वन रेंज से वन विभाग के सभी दावों की पोल खोलते हुए बेशकीमती खैर के दर्जनों पेड़ों की कटाई का कई वीडियो सामने आया है….
बेशकीमती खैर के पेड़ों के कटान की वीडियो किसी बाहरी नहीं बल्कि एक स्थानीय युवक ने बनाया है….खैर के पेड़ों के अवैध कटान की पोल खोलने के साथ-साथ वीडियो बनाने वाले युवक ने वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारियों पर भी सवालिया निशान खड़े किए हैं….
हालांकि हम वीडियो बनाने वाले युवक के द्वारा वन विभाग के अधिकारियों और वन कर्मियों पर लगाए गए आरोपों की पुष्टि नहीं करते है….खैर के पेड़ों की कटाई के इन सभी वीडियो को देखकर एक बात तो साफ है कि बाजपुर के बरहैनी वन रेंज में बड़े पैमाने पर बेशकीमती खैर के पेड़ काटे गए हैं….
इस पूरे मामले को लेकर जब हमने आज बरहैनी वन रेंज के वन क्षेत्राधिकारी रूप नारायण गौतम को फोन लगाया तो रेंजर साहब ने फोन उठाना भी उचित नहीं समझा….दरअसल औषधीय गुण,कत्था बनाने और चमड़ा उद्योग में उपयोगिता के लिए मांग तेज होने की वजह से खैर की प्रजाति पर संकट आ गया है और मोटे मुनाफे के लिए तराई के जंगलों में भी तस्कर बीते कई वर्षों से खैर की लकड़ी की तस्करी का काम बेखौफ होकर कर रहे हैं….
उत्तराखंड से खैर की लकड़ी को तस्कर कत्था और गुटखा बनाने के लिए यूपी हरियाणा और नेपाल तक तस्करी कर ले जाते हैं….महंगी होने के कारण खैर की लकड़ी की मांग सबसे ज्यादा है….खैर की लकड़ी प्रमुख रूप से कत्था और गुटखा बनाने में प्रयोग की जाती है….
देशभर में खैर का जंगल तेजी से सिमट रहे है और वन विभाग ने इसे दुर्लभ वृक्ष की श्रेणी में रखा है….अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) ने वर्ष 2004 में विश्व में तकरीबन 552 पेड़ों की प्रजातियों को खतरे में माना गया जिसमें 45 प्रतिशत पेड़ भारत से थे,इन्हीं में खैर का नाम भी शामिल है….
खैर के पेड़ का इस्तेमाल औषधि बनाने से लेकर पान मसाला में इस्तेमाल होने वाले कत्था और चमड़ा उद्योग में इसे चमकाने के लिए किया जाता है….प्रोटीन की अधिकता के कारण ऊंट और बकरी के चारे के लिए इसकी पत्तियों की काफी मांग है…. आयुर्वेद में इसका इस्तेमाल डायरिया,पाइल्स जैसे रोग ठीक करने में होता है….
मांग अधिक होने की वजह से खैर के पेड़ों को अवैध रूप से जंगल से काटा जाता है…..खैर की लकड़ी की कीमत लकड़ी बाजार में 6 हजार रुपये से 7 हजार रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से तय होती है और इस तरह अगर लकड़ी तस्कर खैर के एक वयस्क पेड़ को काट ले तो उन्हें लाखों रुपए का फायदा हो जाता है….
इस पूरे मामले पर जब हमने राज्य के मुख्य वन संरक्षक एवं मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक डॉ पराग मधुकर पराग मधुकर धकाते से बात की और उन्हें इस पूरे मामले से अवगत कराया तो उन्होंने यह साफ कहा कि इस पूरे मामले का बेहद सख्ती के साथ संज्ञान लिया जाएगा…
डॉ पराग मधुकर धकाते ने यह भी बताया कि इस पूरे मामले की जांच वन संरक्षक पश्चिमी वृत्त हल्द्वानी दीप चंद्र आर्य को सौंप दी गई है,साथ ही डॉ धकाते ने यह भी साफ कहा कि इस पूरे मामले की जांच के बाद दोषी पाए जाने वाले आरोपियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई भी की जाएगी।