Tuesday, December 24, 2024
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**Karnataka Election Results 2023:जानिए क्यों कर्नाटक में BJP की हुई करारी हार और कांग्रेस को मिली प्रचंड जीत**

कर्नाटक में सत्ता में वापसी करने में भाजपा की करारी विफलता का 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी के दक्षिणी ध्रुव पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है क्योंकि दक्षिण भारत में कर्नाटक एकमात्र राज्य है जहां भाजपा शासन में रही है या एक प्रमुख स्थान रखती है…. कर्नाटक चुनाव के नतीजे साफ हो चुके हैं और हिमाचल प्रदेश के बाद कर्नाटक में भी भाजपा को बड़ा झटका लगा गया है….कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जहां कांग्रेस ने 224 सीटों में से 136 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत हासिल कर लिया है,वहीं दूसरी तरफ भाजपा के खाते में केवल 65 सीटें ही आ सकी….जबकि जेडीएस को 19 और अन्य को 4 सीटें मिली….पिछले एक साल के अंदर कर्नाटक दूसरा राज्य है,जिसकी सत्ता भाजपा के हाथ से कांग्रेस ने छीन ली….. इसका बड़ा सियाासी मतलब भी निकाला जा रहा है और खासतौर पर ये भाजपा के लिए बड़ी चिंता की बात है क्योंकि इस साल कर्नाटक के बाद अब आगे पांच अन्य राज्यों में चुनाव होने हैं….

जिनमें राजस्थान,छत्तीसगढ़,मध्यप्रदेश,मिजोरम और तेलंगाना शामिल है ….इसके अलावा अगले साल यानी 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं जिसके बाद सात राज्यों में चुनाव होने हैं….कुल मिलाकर अगले दो सालों में लोकसभा के साथ-साथ 13 बड़े राज्यों के चुनाव होने हैं, जिसमें कई दक्षिण के राज्य भी हैं….इसलिए भाजपा के लिए कर्नाटक की हार को बड़ा झटका माना जा रहा है….कर्नाटक में डबल इंजन वाली भाजपा सरकार को लोकसभा चुनाव में करारी हार का सामना क्यों करना पड़ा आइए जानते हैं राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार इसके कुछ प्रमुख कारण….कर्नाटक में बीजेपी की करारी हार के पीछे मजबूत चेहरे का न होना और सियासी समीकरण साधने में नाकामी जैसी बड़ी वजहें भी प्रमुख रही हैं….आखिरकार पूरी ताकत झोंकने के बावजूद कर्नाटक में भाजपा क्यों हार गई? वो कौन से कारण थे,जिसके चलते भाजपा को इतना बड़ा झटका लगा…आइए जानते हैं… 

*******बीजेपी की हार के कारण********

1.कर्नाटक में मजबूत चेहरा न होना:कर्नाटक में बीजेपी की हार की सबसे बड़ी वजह मजबूत चेहरे का न होना रहा है…..दरअसल भारतीय जनता पार्टी ने येदियुरप्पा की जगह बसवराज बोम्मई को भले ही कर्नाटक का मुख्यमंत्री बना दिया था लेकिन CM की कुर्सी पर रहते हुए भी राज्य में बोम्मई का कोई खास प्रभाव नजर नहीं आया,वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के पास डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया जैसे मजबूत चेहरे थे और अब ऐसा माना जा रहा है कि बोम्मई चुनावी मैदान में आगे करके उतरना बीजेपी को काफी महंगा पड़ा गया।

2.आंतरिक कलह बनी मुसीबत:ये सबसे बड़ा कारण है….चुनाव के दौरान ही नहीं,बल्कि इससे काफी पहले से भाजपा में आंतरिक कलह की खबरें सामने आ रही थीं….कर्नाटक भाजपा में कई धड़े बन चुके थे,जिनमें से एक मुख्यमंत्री पद से हटाए गए बीएस येदियुरप्पा का गुट था,दूसरा मौजूदा मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई का,तीसरा भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बीएल संतोष और चौथा भाजपा प्रदेश नलिन कुमार कटील का था…एक पांचवा फ्रंट भी था,जो पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सीटी रवि का था….इन सभी फ्रंट में भाजपा के कार्यकर्ता पिस रहे थे और सभी के अंदर पॉवर गेम की लड़ाई चल रही थी। 

3.भ्रष्टाचार:बीजेपी की हार के पीछे सबसे बड़ा कारण भ्रष्टाचार का मुद्दा भी रहा….दरअसल कांग्रेस ने बीजेपी के खिलाफ शुरू से ही ’40 फीसदी पे-सीएम करप्शन’ का एजेंडा सेट कर दिया था और ये धीरे-धीरे बड़ा मुद्दा बन गया….करप्शन के मुद्दे पर ही एस ईश्वरप्पा को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था और एक बीजेपी विधायक को जेल भी जाना पड़ा था…और तो और पूरे मामले को लेकर स्टेट कॉन्ट्रैक्टर एसोसिएशन ने पीएम तक से शिकायत कर डाली थी….बीजेपी के लिए ये मुद्दा भी चुनाव में गले की फांस बना रहा और पार्टी चाह कर भी इसकी काट नहीं खोज सकी।

4.टिकट बंटवारे ने बिगाड़ा बाकी खेल:जहां एक तरफ राज्य में पार्टी आंतरिक कलह से जूझ रही थी,वहीं दूसरी तरफ ऐसे समय में टिकट बंटवारे को लेकर भी बड़ी गड़बड़ी हुई….पार्टी के कई दिग्गज नेताओं का टिकट काटना भाजपा को भारी पड़ा गया….पार्टी नेताओं की बगावत ने भी कई सीटों पर भाजपा को नुकसान पहुंचाया…. तकरीबन 15 से ज्यादा ऐसी सीटें हैं,जहां भाजपा के बागी नेताओं ने चुनाव लड़ा और पार्टी को बड़ा नुकसान पहुंचाया….जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण सावदी जैसे नेताओं का अलग होना भी पार्टी के लिए बड़ा नुकसान साबित हुआ।

5.सियासी समीकरण नहीं साध सकी बीजेपी:कर्नाटक के राजनीतिक समीकरण को भी बीजेपी साधकर नहीं रख पाई….बीजेपी न ही अपने कोर वोट बैंक लिंगायत समुदाय को अपने साथ जोड़े रख पाई और ना ही दलित,आदिवासी,ओबीसी और वोक्कालिंगा समुदाय का ही दिल जीत सकी….वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस मुस्लिमों से लेकर दलित और ओबीसी को मजबूती से जोड़े रखने के साथ-साथ लिंगायत समुदाय के वोट बैंक में भी सेंधमारी करने में सफल हो गई।

6.आरक्षण का मुद्दा पड़ा भारी:बीजेपी की हार का ये भी एक बड़ा कारण हो सकता है…कर्नाटक चुनाव में भाजपा ने चार प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण खत्म करके लिंगायत और अन्य वर्ग में बांट दिया और पार्टी को इससे फायदे की उम्मीद थी पर ऐन वक्त में कांग्रेस ने बड़ा पासा फेंक दिया…. कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में आरक्षण का दायरा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 75 फीसदी करने का एलान कर दिया और इसने भाजपा के हिंदुत्व के मुद्दे को पीछे छोड़ दिया… आरक्षण के वादे ने कांग्रेस को बड़ा फायदा पहुंचाया,जबकि लिंगायत वोटर्स से लेकर ओबीसी और दलित वोटर्स तक ने चुनाव में कांग्रेस का साथ दिया।

7.ध्रुवीकरण का दांव नहीं आया काम:कर्नाटक में एक साल से बीजेपी के नेता हलाला,हिजाब से लेकर अजान तक के मुद्दे उठाते रहे और ऐन चुनाव के समय बजरंगबली की भी एंट्री हो गई लेकिन धार्मिक ध्रुवीकरण की ये कोशिशें बीजेपी के काम नहीं आईं….कांग्रेस ने बजरंग दल को बैन करने का वादा किया तो बीजेपी ने बजरंग दल को सीधे बजरंग बली से जोड़ दिया और पूरा मुद्दा भगवान के अपमान का बना दिया….बीजेपी ने जमकर हिंदुत्व कार्ड खेला पर अंततः यह दांव भी काम नहीं आ सका।
 
8.येदियुरप्पा जैसे दिग्गज नेताओं को साइड लाइन करना महंगा पड़ा: कर्नाटक में बीजेपी को खड़ा करने में अहम भूमिका निभाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा इस बार के चुनाव में साइड लाइन रहे….पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व डिप्टी सीएम लक्ष्मण सावदी का बीजेपी ने टिकट काटा तो दोनों ही नेता कांग्रेस का दामन थामकर चुनाव मैदान में उतर गए….येदियुरप्पा,शेट्टार,सावदी तीनों ही लिंगायत समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं जिन्हें नजर अंदाज करना बीजेपी को महंगा पड़ गया….

 
9.सत्ता विरोधी लहर की काट नहीं तलाश सकी:कर्नाटक में बीजेपी की हार की बड़ी वजह सत्ता विरोधी लहर की काट नहीं तलाश पाना भी रहा है….बीजेपी के सत्ता में रहने की वजह से उसके खिलाफ लोगों में नाराजगी थी….बीजेपी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर हावी रही, जिससे निपटने में बीजेपी पूरी तरह से असफल रही…..

10.दक्षिण बनाम उत्तर की लड़ाई का भी असर:भाजपा राष्ट्रीय पार्टी है और मौजूदा समय केंद्र की सत्ता में है और ऐसे में भाजपा नेताओं ने हिंदी बनाम कन्नड़ की लड़ाई में मौन रखना ठीक समझा,जबकि कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने मुखर होकर इस मुद्दे को कर्नाटक में उठाया…. नंदिनी दूध का मसला इसका उदाहरण है….कांग्रेस ने नंदिनी दूध के मुद्दे को खूब प्रचारित किया और एक तरह से ये साबित करने की कोशिश की है कि भाजपा उत्तर भारतीय कंपनियों को बढ़ावा दे रही है।

कुल मिलाकर राजनीतिक विश्लेषक कर्नाटक में भाजपा की करारी हार के इन उपरोक्त कारणों का हवाला दे रहे हैं उधर एक तरफ जहां कर्नाटक में प्रचंड बहुमत मिलने से कांग्रेस पार्ट काफी उत्साहित है,वहीं दूसरी तरफ कर्नाटक में मिली करारी शिकस्त के बाद अब BJP हार के कारणों की समीक्षा कर रही है

Pooran Rawat (Master of Mass Communication) In Associate with Shri Badri Kedar Media House
Pooran Rawat (Master of Mass Communication) In Associate with Shri Badri Kedar Media House
Address : RH-61, Second Floor, Metropolis Mall, Nainital Road, Rudrapur (U.S.Nagar) Uttarakhand - 263153
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